Chemistry Questions
Pandit Deendayal Upadhyaya Shekhawati University
Chemistry Questions
प्रश्न 1.किसी स्पीशीज की विद्युतऋणात्मकता एवं कठोरत मृदुता में संबंध स्थापित कीजिये ?
उत्तर- किसी स्पीशीज की विद्युतऋणात्मकता एवं कठोरता व मृदुता में सम्बन्ध - सामान्य रूप से वे स्पीशीज जिनकी विद्युत ऋणात्मकता तुलनात्मक रूप से अधिक होती है, कठोर होती है एवं जिनकी विद्युतऋणता मृदुता कम होती है वे मृदु होती हैं यहाँ स्पीशीज में हम धात्विक आयनों की बात करते हैं न कि परमाणुओं की। जैसे-लिथीयम परमाणु (Li) की विद्युतऋणता तो बहुत कम है लेकिन लिथीयम धनायन (Lit) की विद्युतऋणता काफी अधिक है क्योंकि इसके द्वितीय आयनन विभव का मान अत्यन्त उच्च होता है इसके विपरीत कम ऑक्सीकरण अवस्था में संक्रमण धातुओं [Cu+, Ag+, etc] के आयनन विभव के मान काफी कम होते हैं अतः इनकी विद्युतऋणता के मान भी काफी कम होते हैं। विद्युतऋणता एवं कटोरता के मध्य संबंध से यह समझने में मदद मिलती है। ट्राइफ्लोरो मेथिल (CF3) मेथिल समूह से अधिक कठोर है। इसी प्रकार BF3 (बोरोन ट्राइफ्लोराइड) BH; (बोरेन) से अधिक कठोर है क्योंकि इसकी अधिक विद्युतऋणीय परमाणुओं की उपस्थिति CF3 समूह तथा BF3 को अधिक विद्युतऋणीय बना देती है।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अत्यधिक विद्युतऋणता वाले परमाणु से प्राप्त ऋणायन कठोर क्षार होगा इसके विपरीत निम्न विद्यतुऋणता वाले परमाणुओं से प्राप्त ऋणायन मृदु क्षार है।
मुलीकन जैफ ने अपनी विद्युतऋणात्मकता की परिभाषा में दो पैरामीटर a/व b का उपयोग किया जिसमें से व आयनन ऊर्जा व इलेक्ट्रॉन बंधुता वक्र का प्रथम व्युत्पन्न है एवं b द्वितीय व्युत्पन्न है। इनमें से पद a मुलीकन की मूल विद्युतऋणता के समरूप है जबकि पद b परमाणु या समूह के आवेश सामर्थ्य का व्युत्क्रम है (b = l/k) विद्युतऋणता एवं कठोरता का संबंध इस b पद में निहित है।
फ्लोरीन के लिए b का मान काफी उच्च होते हैं। अत: यह न केवल ऋणायन के रूप में कठोर है बल्कि - CF, समूह को भी बना देता है। CH से कठोर पार व पीयरसन (1987) ने धातु आयन एवं लिगेण्डों के कठोर एवं मृदु गुणों के लिए b पद का उपयोग किया, मुलीकन जैफ द्वारा व पद को परम विद्युतऋणात्मकता नाम दिया गया। इस आधार पर b का नाम परम कठोरता रखा गया इसे n से प्रदर्शित करते हैं।
परम कठोरता (n) : विद्युत ऋणात्मकता एवं -बंधुता के अन्तर के आधे को परम कठोरता कहते हैं।
n= (IP-EA)/2
IP = विद्युत ऋणात्मकता
EA = e- बंधुता
कठोर मृदु अम्ल क्षार [HSAB] अन्तक्रिया की व्याख्या करने के लिए इन्होंने परम कठोरता का उपयोग किया जा सकता है जिसके अनुसार- HSAB सिद्धान्त के प्रारम्भ से ही परमाणुओं की सीमान्तक कक्षकों के बारे में विचार किया गया।
इनमें उच्चतम भरे हुए अणुकक्षक (HOMO) व निम्नतम रिक्त अणुकक्षक (LUMO) आते हैं। कूपमैन प्रमेय के अनुसार किसी कोश स्पीशीज के लिए HOMO का ऊर्जा स्तर आयनन ऊर्जा को दर्शाता है जबकि LUMO का ऊर्जा स्तर उसकी बंधुता को प्रदर्शित करता है।
कठोर स्पीशीज के लिए HOMO - LUMO के मध्य का ऊर्जा अन्तर अधिक होता है। जबकि मृदु स्पीशीज के HOMO-LUMO के मध्य का ऊर्जा अन्तर कम होता है नीचे कम ऊर्जा स्तर वाले ऐसे रिक्त कक्षक जो निम्नतम ऊर्जा अवस्था के साथ मिश्रित हो जाए, मृदु परमाणुओं की ध्रुवणता की व्याख्या करते हैं। इस प्रकार की परस्पर ध्रुवणता अभ्र में विकृति आ जाती है जिससे प्रतिकर्षण कम हो जाता है इसके अतिरिक्त इन स्पीशीज के साथ युग्मित o बंध व पश्च बंध में वृद्धि हो जाती है। Li F. Be - O तथा C C सभी समइलेक्ट्रॉनिक श्रेणी के सदस्य हैं और ये सभी प्रबल बंध हैं फिर भी इसमें सर्वाधिक प्रबल बंध Li-F इसका कारण कठोर-कठोर अन्तक्रिया के अतिरिक्त इनमें निम्न प्रकार का अनुनाद भी होता
Li+ F → Li-F
25% ऊर्जा सहसंयोजन बंध
50% ऊर्जा - आयनिक बंध
25% ऊर्जा - आवेश स्थानांतरण से प्राप्त
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